पाकिस्तान अपनी आजादी के 76 सालों में 23वीं बार दिवालिया होने की कगार पर है। मगर इस बार बर्बादी की वजह और इसका असर दोनों कुछ अलग हैं।
एक साल से भी कम वक्त में श्रीलंका के बाद पाकिस्तान एशिया का दूसरा देश है जो दिवालिया होने वाला है। दोनों देशों की बरबादी की इस कहानी में कुछ कॉमन पॉइंट दिखते हैं।
पहला, दोनों ही लंबे समय तक राजनीतिक उथल-पुथल का शिकार रहे।दूसरा, दोनों की अर्थव्यवस्था में निर्यात से ज्यादा आयात का रोल है।तीसरा, श्रीलंका के दिवालिया होने से ठीक पहले के सीन की तरह आज पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार खत्म होने की कगार पर है।चौथा, दोनों ही देश बरबादी के समय कर्ज में डूबे हुए थे।पांचवां और सबसे अहम पॉइंट.

…दोनों ही देशों पर सबसे ज्यादा कर्ज चीन का है। श्रीलंका के दिवालिया होने से ठीक पहले उस पर विदेशी कर्ज का 30% हिस्सा चीन से लिया हुआ कर्ज था।
ठीक उसी तरह आज पाकिस्तान के कुल कर्ज का 30% हिस्सा चीन से लिया हुआ कर्ज है।चीन के सस्ते कर्ज के जाल के बारे में अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ लंबे समय से आगाह करते आ रहे हैं, लेकिन फिर भी श्रीलंका और पाकिस्तान इस जाल में फंसे और बरबादी के मुहाने पर जा पहुंचे।हालांकि, एशिया के इन दो देशों के संकट में भारत के लिए एक ऑपर्च्युनिटी भी है।
दक्षिण एशिया में बिग ब्रदर के तौर पर खुद को स्थापित करने से लेकर अपनी करंसी को इंटरनेशनल ट्रेड में मजबूत करने के इस मौके का भारत इस्तेमाल भी कर रहा है।समझिए, चीन का सस्ते कर्ज का जाल क्या है? क्यों श्रीलंका के बाद पाकिस्तान भी इस ट्रैप में फंसा और इस पूरे परिदृश्य में भारत के लिए बेहतरी का मौका कैसे है?